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दर्द लेकर द्रोह को / प्रेमलता त्रिपाठी

जी रहा हर व्यक्ति क्यों कर, दर्द लेकर द्रोह को ।
कर्म सुंदर साथ हो तू, छोड़ माया मोह को ।

सारथी बन कर मिलेगें,श्याम सुंदर आज भी,
शोध जागृत कर सयाने, मूल में संदोह को ।

गंध चंदन भाव अर्पण, की जरूरत हैं यहाँ,
दो महकने नित्य जीवन,खो न देना छोह को ।

दुख निराशा की घडी़ में,भोर बन कर जागना,
एक दूजे के लिए बन, राह संबल टोह को ।

दर्द को कह अलविदा तू,मीत मेरे इस समय,
प्रेम की जो बेल उसको, सींच दे आरोह को ।