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दलित / चंद्र रेखा ढडवाल

नामवर मेरे अध्यापक नहीं रहे
मैंने मैनेजर पांडे के साथ
किसी कहवा घर में बहस नहीं की
यूँ ही चलते-चलते
मुझे नहीं मिल जाते अशोक वाजपेयी
मैंने नहीं जाना
किस दोस्ताना लहजे
में बात करते हैं राजेन्द्र यादव
दलित विमर्श या स्त्री-विमर्श जैसा
कोई मुद्दा नहीं उगता मेरे आस-पास
साहित्यिक वाङमय का दलित मैं
छोटे शहर का कवि
किस खाते में जाएगा
निष्कासन मेरा
किस शीर्षक तले
विश्लेषित
 होगी
कविता मेरी?