मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
दशरथ प्राण तेजु, कैकेयी समाद भेजु रे
आब के राजा जी के जरयतै हो दुलरुआ
रामचन्द्र वन गेला भरत जी गाम छथि
कहाँ गेली किए भेली कैकेयी माता
झटपट भेजु ने समाद हो दुलरुआ
जखने समदिया समाद लए पहुँचल
पूछऽ लागल कुशल समाद हो दुलरुआ
एक कुशल कहू माता तीनू रनिया
दोसर कुशल कहू अयोध्या हो दुलरुआ
पिताजी कुशल बौआ कहलो ने जाइ अछि
सून भेल अयोध्या नगर हो दुलरुआ
जखन भरत जी नगर सँ बाहर भेल
नाना जी सँ मांगल विदाइ हो दुलरुआ
जखन भरत जी अवध बीच अयलनि
आइ किए नग्र उदास हो दुलरुआ
आइ जे दशरथ जी प्राा जे तेजलनि
ताहि हेतु नग्र उदास हो दुलरुआ
एतबा वचन जब सुनलनि भरत जी
खसला चित्ते मुरछाइ हो दुलरुआ
कौशिल्या जे पानि लाउ
कैकेयी जे मुह पोछु, आब के राजा जरेतै हो दुलरुआ