मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
दस पाँच सखी मिलि पनियां के गेलहुँ
ओहि रे जमुना किनार हे
आहे एक सखी केर गागर फुटि गेल
सब सखी रहली लजाइ हे
छोटकी ननदिया राम बड़ तिलबिखनी
दौड़ि खबरि भइया के पहुँचाइ हे
तोहरो के तिरिया भइया भंगबा के मातलि
गागर कयल सकचुर हे
हर जोतऽ गेलिऐ बहिनी फार जे टुटि गेल
बिजुवन टुटल कोदारि हे
पानि भरे गेलै गे बहिना गागर फुटि गेलै
तिरिया के कओने अपराध हे
बरदा के आंकुश हो भइया दुइ रे पैनमा
घोड़बाक आंकुश लगाम हे
हथिया के आंकुश हो भइया
दुइ रे हौदबा हे
तिरिया के आंकुश सारी-राति हे