दस सखिन सिरे मटुकी, रे मटुकी, गोरस बेंवन जाय
सीरी वीरिना वनकुंज तिन में, जहाँ कृष्ण बंसी बजाय।।१।।
हाँ रे, दही मोरे खइलें, मटुकी सिर फोरलें, गंडुरी दिहलें दहवाय
अंग-अंग मोरा चोली-बन फारे, कि गजमोती देलें छितराय।।२।।
कि दूर से बोलावे, लगे बिठावे, कि मथुरस बचनि सुनाय
अंग-अंग मोरा पिरिती बढ़ावे, कि सरबस नयना जुड़ाय।।३।।
बुध जइसन नारी, भूखा अइसन भारका, कि तरुनी मस्त जबान
बूढ़ वर तरुनी नाहिं माने, सेजस जोग दरमान।।४।।
हाँ रे, मड़वाँ के दखिने कदमवाँ के गछिया, बहरि पसर गइले डाढ़
ताहि तर कृष्ण गेना ले खेले, खेलत कृष्ण मुरार।।५।।
कटकल गेना गिरे यमुना में, कि संगहीं में धँसल मुरार
हाँ रे, कहवाँ के गेना कहाँ चलि गइलो, चलि गइलो इन्द्र फुलवार।।६।।
हांरे किया तोरे बालक गउआ हेरइले, किया तोरे वटिया भुलाय
काहे कारन तूहूँ अइले रे बालक, किहाँ तुम्हारे नाम।।७।।
नाहीं रे नागिन गउआ हेरइले, नाहीं त बटिया भुलाय
नाग नाथन अइनी रे नागिर, पाँच फूल कर काज।।८।।
ठोकी-ठाकी नागिन नाग के जगावे, नाग उठेले रिसिआय
नाग रिसिआई के फन फुफुकारे, कि कृष्ण झंवर होइ जाय।।९।।
कि रामा हरे रामा करि धरि के धेआना के गरुड़ उतारेसब चार
हाँ रे, अँगुरी बीचरि कृष्ण मुख डारे, कि कृष्ण उठे हरखाया।।१0।।
कुश उखारि कृष्ण नाग पीठि लादे, कि ले गोकुला पहुँचाय।।११।।
कि कर जोरी विनति करत बारी नागिन, ‘कृष्णजी से अरज हमार
कि जेतना ही अयगुन नाग से कइलें बकसहू सामी हमार’।।१२।।