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दहशत / गुलाब सिंह

(संदर्भ : पंजाब)

अपने से दूर हुए हम
यह कैसी पूजा है, कैसी अरदास?

सोने के मंदिर में ईश्वर
चाँदी के घर में विश्वास
गेंहूँ के खेतों में बिखरे हैं
कुचले गुलमुहर अमलतास

घासों का रंग तक बदल गया
ढोर तक बहुत-बहुत उदास।

नींद गई आँखों से अपलक
आँगन में सहमी किलकारी
माँ का थन सूँघ-सूँघ बछड़ा
देख रहा भागती सवारी

दूधों की नदियों पर काँपती
किरणों की आखिरी उसाँस।

जिन-जिन पर सिरजे थे घोसले
गिन-गिन कर सूख रहे पेड़
देख रहे दुबक कर परिन्दे
रात की धुएँ से मुठभेड़

कलश में बिंधा हुआ कबूतर
नींव में गड़ा संग तराश।