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दही-बड़े हम / प्रकाश मनु

दही-बड़े हम दही बड़े!
दौड़े आओ, मत शरमाओ
खाओ भाई खड़े-खड़े!

स्वाद मिलेगा कहीं न ऐसा,
चखकर देखो फेंको पैसा।
टाफी-च्यूंगम, आइसक्रीम के
पल में लो झंडे उखड़े।

अजब-अनोखा रंग जमाया,
डंका हमने खूब बजाया।
आ ठेले पर, खड़े हुए हैं,
लाला, बाबू बड़े-बड़े।

अपनी मस्ती, अपनी हस्ती,
खा करके आती है चुस्ती।
तबियत कर दें खूब झकाझक-
अगर कोई इमसे अकड़े।

पेड़ा, बरफी चित्त पड़े हैं,
रसगुल्ले उखड़े-उखड़े हैं।
भला किसी की यह मजाल जो
आकर के हमसे झगड़े।