Last modified on 12 दिसम्बर 2009, at 15:37

दाईं बाजू / माखनलाल चतुर्वेदी

ये साधन के बाँट साफ हैं, ये पल्ले कुटिया के,
श्रम, चिन्तन, गुन-गुन के ये गुन बँधे हुए हैं बाँके,
जितने मन पर मनमोहन अपना दर्शन दिखलाता
कितनी बार चढ़ा जाता हूँ, उतना हो नहिं पाता।
वे बोले जीवन दाँवों से
मैली दाईं बाजू,
अन्धे पूरा भार तुले कब
कानी लिये तराजू।

रचनाकाल: बिलासपुर जेल-१९२२