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दादा-दादी के लिए / प्रज्ञा रावत

वो भी थे ही
किसी के माता-पिता
उनका घर सबका
घर था
आत्मा सबके लिए थी

उनके पास था ही नहीं
कुछ छिपाने के लिए
उन्होंने कभी बन्द
कमरे में नहीं
की कोई मन्त्रणा
उनकी मृत्यु भी थी
किसी शान्त उत्सव-सी
 
ठहरो! बुज़ुर्ग कहते हैं
कि ऐसे ही बोलों से
नज़र लगा करती है।