Last modified on 14 अगस्त 2021, at 14:37

दादी / अर्चना लार्क

क्या किसी ने सुनी है
दादी के पोपलों से ठनकती हंसी
उनकी सदविरिछ और सारंगा की कहानी
मैंने सुनी है

दादी अभिभूत हो उठती हैं
क़िस्सा सुनाते - सुनाते
एक पल को गाती हैं तो दूसरे ही पल रोती भी हैं
जैसे एक चलचित्र चल रहा आँखों के सामने

दादी हसीन और लाजवाब नायिका सी लगती हैं
क़िस्सों के बीच ऐसे डूबती उतराती हैं
जैसे नाव बीच मंझधार में हो

दादी का चूमना गले लगाना और कहना
मेरी आंखें तुम्हे कुछ अच्छा करते देखना चाहती हैं
करोगी न !

एक आशा एक विश्वास है उनकी आंखों में
आज पाती हूँ ख़ुद को
उन्हीं के सपने को साकार करते हुए

पर दादी चुप हैं
गायब हो गई है कहीं उनकी ठनकती हंसी
उनका क़िस्सा

वो बेजान सी बैठी दूर
बहुत दूर
शायद अपनी मंज़िल देख रही हैं ।