वसुषेण माता रोॅ गर्भ सें जबेॅ ऐलै
कवच-कुण्डल लेने जन्मलोॅ छेलै ।
हौ अस्त्रा-शस्त्रा सेॅ अभेद छेलै
तन केरोॅ साथ दिव्य कवच-कुण्डल बढ़ी रहलोॅ छेलै ।
दोनों ठोॅ अमृत सेॅ अटलोॅ-पटलोॅ छेलै
हिनकोॅ कानोॅ में अटकलोॅ पड़लोॅ छेलै ।
कोय शत्राु हिनका मारै मेॅ सक्षम नै छेलै
कर्ण अर्जुन केरोॅ सामना करै मेॅ निपुण छेलै ।
पाण्डव पक्षोॅ मेॅ हिनका सेॅ भय समैलोॅ छेलै
देवराज इन्द्र सेॅ संदेश भेजवैनें छेलै ।
चिन्ता रोॅ कारण कर्ण रोॅ अजय शक्ति छेकै
तत्काल राहत दिलाभौ, हौ शक्ति सें मुक्ति दै केॅ ।
कर्ण केॅ रातोॅ में स्वप्नोॅ मेॅ ब्राह्मण कहि रहलोॅ छेलै
अचानक रातोॅ मेॅ चैकी गेलोॅ छेलै ।
ब्राह्मण हमरा सें माँगै, हम्में हौ अस्वीकार ने करे पारै छी,
असंभव कामोॅ केॅ संभव में बदलै पारै छी ।
स्वप्न मेॅ ब्राह्मण बोललै, हम्में पिता सूर्य छिहौं
हमरा बातोॅ केॅ याद राखिहोॅ ।
कानोॅ में खोसी लेॅ, नै भूलिहोॅ
वसुषेण कहलकैµयाचक रोॅ माँग पूरा करवै ।
खाली हाथ हम्में ने लौटावेॅ पारवै
आपनें हमरोॅ आराध्य पिता छेकियै प्रणाम करे छियै ।
हमरोॅ बातोॅ केॅ अन्यथा लै रोॅ नै कोशिश करवै
इन्द्र आकि ब्राह्मण याचक बनी केॅ निकट ऐतै ।
कृपण रोॅ भक्ति कभियोॅ अस्वीकार ने करवै
अकल्पनीय ब्राह्मण केरोॅ भेषोॅ में आविये गेलै ।
अतिथि स्वीकार करोॅ, याचक बनी केॅ ऐलोॅ छियै
याचक केॅ कभियोॅ घुमै लेॅ नै देनै छियै ।
इन्द्र नेॅ कवच-कुण्डल रोॅ याचना करलकै
तलवार उठैलकै कवच-कुण्डल काटी देलकै ।
इन्द्र केरोॅ हाथोॅ में सुपूर्द करी देलकै
पहाड़ोॅ रं भारी प्रश्न राखी देलकै ।
देवराज नेॅ अमोध शक्ति प्रदान करी देलकै
कवच-कुण्डल साथोॅ मेॅ ले केॅ चल्लोॅ गेलै ।
इन्द्र नेॅ आर्शीवाद देलकै
शरीर कुरूप नै होय रोॅ वचन देलकै ।