दाने की न पानी की,न आवै सुध खाने की,
याँ गली महबूब की अराम खुसखाना है.
रोज ही से है जो राजी यार की रजाय बीच,
नाज की नजर तेज तीर का निशाना है.
सूरत चिराग रोशनाई आसनाई बीच,
बार बार बरै बलि जैसे परवाना है.
दिल से दिलासा दीजै हाल के न ख्याल हूजै,
बेखुद फकीर,वह आशिक दिवाना है.