दाल-भात
खा रहा है कौआ
आदमी को खा रहा है
आदमी का हौआ
उड़ा चला जा रहा है
कटा कनकौआ
दूर, नज़र से दूर
पराए गाँव,
मर गई डोर
ज़मीन पर पड़ी है
(रचनाकाल : 27.01.69)
दाल-भात
खा रहा है कौआ
आदमी को खा रहा है
आदमी का हौआ
उड़ा चला जा रहा है
कटा कनकौआ
दूर, नज़र से दूर
पराए गाँव,
मर गई डोर
ज़मीन पर पड़ी है
(रचनाकाल : 27.01.69)