था वक्त का तकाजा जो,
हम बयाँ वो दास्ताँ न कर सके !
दो कदम चले साथ मगर,
फिर तय वो रास्ता न कर सके!
तंग-ए-हाल गुजरे वो दिन,
उनसे कभी वास्ता न कर सके !
दर्द-ए-जख्म हैं साथ जिन्हें,
अब तक आहिस्ता न कर सके!
उजड़ा जो चमन एक बार,
उसे हम गुलिश्तां न कर सके!
था वक्त का तकाजा जो,
हम बयाँ वो दास्ताँ न कर सके !