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दिखाते हैं / साहिल परमार

रात में आँसू ही आँखों में उमड़ आते हैं
आज भी हम को वो इतना तो याद आते है

जिन्हें चाहा उन्हें मिलना अभी मुमकिन नहीं
सब इस शहर से भी दूर-दूर बसने जाते हैं

इतने टूटे हुए ख़्वाबों को ले के जीते हैं
आज हम ही हमें बिखरे से नज़र आते हैं

वो ही उम्मीद वो ही आरजू जिगर में है
जलने लगते हैं अन्धेरों में बैठ जाते हैं

वो कहेंगें कि तुम बहुत बदल गए ‘साहिल’
मिला के आँख कहेंगे ‘जो हैं’’ दिखाते हैं

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार