दिन अहीर भैरव गाए है,
रात गूजरी तोड़ी गाए।
जाने किन-किनके हाथों में शुरुआत के आज सिरे हैं,
पवन चले पुरवाई आगे, पीछे बरखा मेघ घिरे है।
दुख के लगे पहाड़,
कहाँ तक रोने रोएँ,
भेरू और चेतुआ से ले
अधनंगा पचकौड़ी गाए।
सूखे से बच गए आज तो कल बूड़े की आशंकाएँ,
धू-धूकर जल रही चिताओं-सी जनमानस की चिंताएँ,
क्या पहिने, क्या ओढ़े मनुआ
श्रद्धा कैसे जाँघ उधारे?
मौसम बैरी हुए जनम के,
फिर भी प्रीत निगोड़ी गाए।
व्यर्थ हुई आशीषें माँ की, धरती के व्रत-तीज सिराने,
जो अक्षयवट साबित होते, वो संजीवन बीज हिराने;
सविनय करें निवेदन किससे,
किसके आगे हाथ पसारें?
थिर माटी की मूरत ही क्यों,
धारा निपट भगोड़ी गाए।
दिन अहीर भैरव गाए है,
रात गूजरी तोड़ी गाए।