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दिन के अंत में / सुभाष मुखोपाध्याय

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पश्चिम आकाश में रक्त की गंगा बहाकर
किसी दुर्धर्ष दस्यु-सा
रास्ते के लोगों को आँखें दिखाता
अपने डेरे पर लौट गया है
सूर्य।
इसके बहुत देर बाद
मौक़ा-ए-वारदात पर
दिन को रात में बदलने
मानो पुलिस की काली गाड़ी में आई है
साँझ।
लाइट जलाते ही
खिड़की से बाहर कूद पड़ा है
अंधेरा।
पर्दे को हटाते ही
भयाक्रान्त हिरणी-सी
मुझसे लिपट गई है
हवा।


मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी