गले हुए पीतल के सागर को
नाम न दो ।
धुएँ का रंग गहरा
काठ का सहन ठहरा
ऐसे में दिन के यायावर को
शाम न दो ।
चूक गए ताड़ हुए
रेत के पहाड़ हुए
रंगों के आँचल को, खूँट दो
सलाम न दो ।
चन्दन के घाट बँधे
लम्बे-चौड़े कन्धे
नील के सरोवर को बोली-
नीलाम न दो ।