फागुन के दिन बौराने लगे
फागुन के ।
दबे पाँव आकर सिरहाने
हवा लगी बाँसुरी बजाने
दुखता सिर सहलाने लगे
फागुन के ।
रंग-बिरंगा रूप सलोना
कर जाता दरपन पर टोना
सुलझा मन उलझाने लगे
फागुन के ।
रति-सी लाज घोल तालों में
अँगड़ाई लिपटी डालों में
जलपाखी अलसाने लगे
फागुन के ।
ताम्रपत्र अमराई बाँचे
सुधि-सुगंध भर रही कुलाँचें
टेसू प्यार जताने लगे
फागुन के ।
उमगी-उमगी नदी फिरेगी
अंग-अंग सौगन्ध भरेगी
आना, जब दुबराने लगे
फागुन के ।