दिन
बहुत ठण्डे,
एक कुर्ती पहन कुहरे की
ठिठुरते बेचते अण्डे
दिन बहुत ठण्डे !
आग ...
जिस पर
उबलती है भूख उनकी
और की खातिर,
पसलियाँ गिनने
निकल आई कहाँ से
यह हवा शातिर,
एक चिथड़ा खेस
उनके पास भी था
बन गए झण्डे,
दिन बहुत ठण्डे !