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दिन रफ़ू करें / राजेश चड्ढ़ा

भागते दिन को
बांह पकड़ कर
रोकते हुए,
उसके कुरते की सीवन,
जो तुम ने
उधेड़ डाली-
ये दिन-
अब-
दिन भर-
कहां-कहां-
किस-किस से-
छिपता फिरेगा !
ये जो सोच लिया होता ,
तो शायद
ये दिन भी-
अपना दिन
रोज़ाना की तरह
गुज़ार ही देता ।

अब-
अन्जाने में-
अपनेपन से हुए-
अपराध-बोध
से ग्रसित होना भी-
इस दिन से
रिश्ता बिगाड़ना
ही तो है !

सुनो !
शाम को थके-हारे
दिन और तुम-
जब लौटो-
तब करना
मनुहारें-

रात
मेहरबान हो कर-
दिन और तुम्हें-
समेट लेगी
अपने में ,
और फिर से
एक-मेक
हो जाओगे-
दिन और तुम ।

ये तो तय है-

सीवन उधड़ जाने से
रिश्ते नहीं उधड़ा करते ।