रानी की पालकी सलोनी है
शोर हैं कहारों के
दिन हैं मनुहारों के
अँबुआ के नीचे हैं
धूप-छाँव के नाज़ुक हिस्से
तुरही दोहराती है
कटे हुए बरगद के किस्से
बस्ती के आसपास जलसे हैं
रोज़ इश्तिहारों के
दिन हैं मनुहारों के
पलटन है पहरे पर
सूरज की खोज-खबर ज़ारी है
उखड़े पिछले पड़ाव
अगले की पूरी तैयारी है
झंडे हैं लगे हुए खेतों पर
नकली व्यवहारों के
दिन हैं मनुहारों के