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दिन है कि / केदारनाथ अग्रवाल
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दिन है कि
हंस हलाहल पर
मंद मधुर तिर रहा है
दिन है कि
चरने गई गाय का
सफ़ेद बछड़ा
माँ की प्रतीक्षा में बैठा है ।