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दिया जलता रहे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

यह ज़िन्दगी का कारवाँ, इस तरह चलता रहे ।

हर देहरी पर अँधेरों में दिया जलता रहे ॥

आदमी है आदमी तब, जब अँधेरों से लड़े ।

रोशनी बनकर सदा, सुनसान पथ पर भी बढ़े ॥

भोर मन की हारती कब, घोर काली रात से ।

न आस्था के दीप डरते, आँधियों के घात से ॥

मंज़िलें उसको मिलेंगी जो निराशा से लड़े ,

चाँद- सूरज की तरह, उगता रहे ढलता रहे ।

जब हम आगे बढ़ेंगे, आस की बाती जलाकर।

तारों –भरा आसमाँ, उतर आएगा धरा पर ॥

आँख में आँसू नहीं होंगे किसी भी द्वार के ।

और आँगन में खिलेंगे, सुमन समता –प्यार के ॥

वैर के विद्वेष के कभी शूल पथ में न उगें ,

धरा से आकाश तक बस प्यार ही पलता रहे ।