कोई नहीं रोता
लाखों-लाख लोगों को
क़त्ल करता हुआ ये शहर
क़त्ल नहीं होता
मेरी कविता के ज़िगर में
धंस गई है किल्ली
तलवार की धर बन गई है
दिलवालों की दिल्ली
रचनाकाल:1994
कोई नहीं रोता
लाखों-लाख लोगों को
क़त्ल करता हुआ ये शहर
क़त्ल नहीं होता
मेरी कविता के ज़िगर में
धंस गई है किल्ली
तलवार की धर बन गई है
दिलवालों की दिल्ली
रचनाकाल:1994