दिल्ली का यह भीड़-भड़क्का
देख रहे थे अपने कक्का,
होकर बिल्कुल हक्का-बक्का
बोले-तबीयत घबराती है,
अब घर जाएँगे...
हम घर जाएँगे!
भीड़ इधर है, भीड़ उधर है,
रस्ता जाने कहाँ, किधर है!
पागल-सी अफराती भीड़
बिना बात झल्लाती भीड़,
बिना बात की ऐसी हड़बड़,
सुबह-सुबह ही तबीयत गड़बड़।
बोले-बहुत देख ली
दिल्ली,
अब तो भाई, घर जाएँगे,
अब हम भाई, घर जाएँगे।
सर्र-सर्र ये मोटर कारें
दौड़ रहीं ज्यों चाँटे मारें,
चौराहे पर धुआँ-धुआँ-सा
अजी, मौत का एक कुआँ-सा!
दम घुटता है...
बोले कक्का-
भैया, कहाँ फँसे हम आकर,
अब घर जाएँगे...
हम घर जाएँगे!