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दिल के झरोख़ों में / राजश्री गौड़

वो अपने दिल के झरोख़ों में झाँकता कम है,
उसे ये लगता है चाहत का सिलसिला कम है।

बढ़ा के हाथ भी अब उसकी ओर देख लिया,
हमारे दिल के वो जज़्बात आँकता कम है।

समझ सका न वो फिर भी हमारी फितरत को,
हमारे दिल से तो उस दिल का फासला कम है।

कभी न चूम सका वो तमाम खुशियों को,
मिली हुई हैं जो उनको वो सोचता कम है।

न जाने दिल में ये कैसा धुआं सा घुटता है,
कि उनके बीच दिलों का ये राब्ता कम है।

 न सोचना ये कभी भी कि हार जाऊँगी,
खुदा के घर का मेरे दिल से रास्ता कम है।

झुकी है 'राज' सदा से ही दर पे दिलबर के,
मेरी अना का मेरे दिल से वास्ता कम है।