मन करता है, पंख लगाकर पवन संग हो जाऊँ ।
साजन ने बूँदों के हाथों पत्र मुझे लिखवाया,
यह सावन सूना बीतेगा यह कहकर भिजवाया;
आँसू, पीड़ा से बोले तुम ठहरो, मैं तो जाऊँ ।
कागा बोले खिड़की पर तब अँखियाँ सपन जगाए,
पनघट पर सखियों की बतियाँ तन में अगन लगाए;
दरपन में छवि अपनी देखूँ मुग्ध स्वयं खो जाऊँ ।
विरह गठरियाँ कब तक बाँधूँ परदेसी बतला जा,
सेज ताकती सूनी कब से मुखड़ा तो दिखला जा;
यौवन पूछे चूनर से क्या एकाकी सो जाऊँ ।
भोर, दुपहरी, संध्या, रतियाँ दिन गिनते ही बीते,
साजन तुम बिन पूरा सावन बीता रीते - रीते;
दिल चाहे, प्रिय तुमको लेकर प्रीति नगर को जाऊँ।