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दिल तुझे ग़र दिया नहीं होता / रंजना वर्मा

दिल तुझे ग़र दिया नहीं होता
दर्द का सिलसिला नहीं होता

अपने वादे जो निभा जाता वो
जख़्म दिल का हरा नहीं होता

मीरा होती न ग़र दिवानी तो
विष का प्याला पिया नहीं होता

इस तरह से न सताते अपने
अश्क़ इतना बहा नहीं होता

तू निभाता अगर वफ़ा अपनी
दरमियाँ फ़ासला नहीं होता

राम जाते न जंगलों में तो
कोई काँटा चुभा नहीं होता

आसमाँ की न चादरें होतीं
धूल का बिस्तरा नहीं होता