कुछ कह रही हैं हवाएँ
कुछ कह रही हैं फ़िज़ाएँ
दिल ने कहा आज दिल से
सुनो ज़िन्दगी की सदाएँ
धूप ने खोल दीं खिड़कियाँ
खुल गए रोशनी के भँवर
सब्ज़ पत्तों ने आवाज़ दी
गीत गाने लगा गुलमोहर
जब किनारों पे मोती बिछाकर
वापस गई है लहर
नींदों की वादी में महके
ख़्वाबों के कितने गुहर
फ़ासले न रहें दरमियाँ
कहती एहसास की रहगुज़र
मंज़िलों का तक़ाज़ा यही
आओ बन जाएँ अब हमसफ़र