दिल रखने को नहीं छिपाई
मन की कोई झोल ।
कोशिश की
धड़कनें समेटीं
था कुछ और न पास ।
जाने किस खोए को
हरदम
करते रहे तलाश ।
पुनरभ्यासों में सुने सहे
सारे बोल -कुबोल ।
सालोंसाल
रहे ठहरे
जिन अपरिचयों के बीच ।
उन्हें अन्ततः
खुले गटर में
आए हमीं उलीच ।
ख़लल -खोट से लड़ी-निभी को
रखा हर तरह खोल ।
समझ निरापद
घुस अतीत में
की राहत की खोज ।
लेकर लौटे
उम्मीदों पर
नए दुखों का बोझ ।
अमँगलों ने हौंस जगाई
दुनिया गई न डोल ।
इसी हाल में
हर बवाल से
हुए रहे दो-चार ।
यही लतीफ़ा
जिजीविषा है
लदे-फन्दे की पार ।
लबाड़ियों के चित्तराग में
मिले न इसकी तोल ।