Last modified on 1 अप्रैल 2011, at 01:15

दिवस शरद के / केदारनाथ अग्रवाल

मुग्ध कमल की तरह
पाँखुरी-पलकें खोले,
कन्धों पर अलियों की व्याकुल
अलकें तोले,
तरल ताल से
दिवस शरद के पास बुलाते
मेरे सपने में रस पीने की
प्यास जगाते !