कैसा कैसा होता है कभी-कभी मन
पथभूले पांव
आ पहुंचे हों जैसे
किसी अनजाने गांव
या फिर
पूरी होने की चाह में
कोई अधूरी कविता
मुड़ गई हो
ग़लत शब्दों की गली में
कैसा कैसा होता है कभी-कभी मन
पथभूले पांव
आ पहुंचे हों जैसे
किसी अनजाने गांव
या फिर
पूरी होने की चाह में
कोई अधूरी कविता
मुड़ गई हो
ग़लत शब्दों की गली में