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दीठ रो फरक / कन्हैया लाल सेठिया

हुवै चनेक में
निरवालो
कथ‘र
पराई पीड़ नै
हूणी,

मान‘र
निज पर
पड़ी भीड़ नै
अणहूणी
करै अणूंतो बेलीताप,

कोनी
अधभौले
मिनख री
जीभ में हाड !

जे हूंतो
गाढ कोनी करतो
दोपड़ती बातां !