गगन के दीप हैं जले,
मगन हो सारी रात-रात।
भू के दीप भी जलें,
खुशी से आज प्राक् प्रात।
हृदय के दीप भी जलें,
मिले हृदय-हृदय से आज।
मन के दीप भी जलें,
मिले नयन-नयन से आज।
आकाश के प्रकाश से
आलोक देव-लोक में।
भू-प्रकाश से ही हो
प्रकाश मर्त्य लोक में।
दीप जल रहे मगर,
पतंग भी हैं जल रहे।
सीख-सीख अन्य कीट,
प्राण-दान कर रहे।
दीप-दान पर्व है,
सजें खुशी के साज आज।
दिल का दीप दान हो
बजें मिलन के राग आज।
पुण्य का प्रभात हो,
अन्त मोह-रात हो।
ज्ञान-धन का लाभ हो,
द्वेष, भय परास्त हो।
इसलिए ही सब के सब
मनायेंगे दीवालियाँ।
प्रेम, हर्ष ऐक्य से
जलायें दीप अवलियाँ।
-शीतलपुर,
9.11.1950