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दीप जलता है / महेन्द्र भटनागर

दीप जलता है !
सरल शुभ मानवी संवेदना का स्नेह भरकर
हर हृदय में दीप जलता है !
युग-चेतना का ज्वार
जीवन-सिंधु में उन्मद मचलता है !

दीप जलता है !

तिमिर-साम्राज्य के
आतंक से निर्भय
अटल अवहेलना-सा दीप जलता है !

जगमगाता लोक नव आलोक से,
मुक्त धरती को करेंगे
अब दमन भय शोक से !

लुप्त होगा सृष्टि बिखरा तम
हृदय की हीनता का ;
क्योंकि घर-घर
व्यक्ति की स्वाधीनता का

दीप जलता है !

बदलने को धरा
नव-चक्र चलता है !
नहीं अब भावना को
गत युगों का धर्म छलता है !

सकल जड़ रूढ़ियों की
शृंखलाएँ तोड़
नव, सार्थक सबल
विश्वास का
ध्रुव-दीप जलता है !