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दीप बनकर जलो / डी. एम. मिश्र

दीप बनकर जलो, रात सारी जलो
तम पियो ग़म सहो रोशनी के लिए

सूर्य भी अनवरत साथ रहता नहीं
चाँद भी रोज़ आँगन में उगता नहीं
जुगनुओं का भी कोई भरोसा नहीं
दीप हर वक़्त है हर किसी के लिए

सूर्य के चाँद के फासले कम न हों
जब ज़रूरत हमें आ पड़े तब न हों
कौन है सिर्फ जलता इशारों पे जो
मीत की, शत्रु की भी खुशी के लिए

सूर्य को, चाँद को पूजते लोग हैं
जो न वश में उसे चाहते लोग हैं
दीप-सा कोई त्यागी, तपस्वी नहीं
काट तम जो जले आरती के लिए