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दीप रातों में / रेखा राजवंशी

दीप रातों में जलाके रखिए
फूल काँटों में खिलाके रखिए ।

जाने कब घेर ले अकेलापन
एक-दो दोस्त बनाके रखिए ।

दर्द के, दुःख के विरह के आँसू
मुस्कराहट में छिपाके रखिए ।

राह लम्बी है ज़िंदगी छोटी
ख़्वाब ख़ुशियों के सजाके रखिए ।

राज़ अपने हों या पराएँ हों
अपने होठों में दबाके रखिए ।

दोस्त तो दोस्त दुश्मनों को भी
अपने सीने से लगाके रखिए ।

कोई हमदम न कहीं मिल जाए
चाँद तारों को सजाके रखिए ।