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दीवारें / कुमार कृष्ण

लोग कहते हैं-
घर की दीवारों के भी होते हैं कान
मैं कहता हूँ-
दीवारों की होती हैं बड़ी-बड़ी आँखें
ताकतवर कन्धे, बड़ी-बड़ी बाँहें
बहुत बड़ा दिल

दीवारें सुनती हैं लगातार-
दरवाजों-खिड़कियों की सिसकियाँ
वे जानते हैं-
जंगल की कुर्बानी का दूसरा नाम है दरवाज़ा
खिड़कियाँ हैं पेड़ों के क़त्ल की कहानियाँ

दीवारें होती हैं-
घर के हर सुख-दुःख
खुशी और ग़म की चश्मदीद
दीवारें झेलती हैं हर मौसम की मार
रखती हैं सहेज कर नयी पुरानी यादें
हमारी आस्थाएँ, विश्वास, इरादे और सपने
थकी हुई पीठ का सहारा हैं दीवारें

दीवारें पहनती हैं पूरे घर के कपड़े-
कमीज़, पतलून, गमछा, टोपी, चुनरी, धोती
दीवारें जानती हैं रिश्तों को ढकना

कैसी विडम्बना है-
बोलना नहीं जानतीं दीवारें
दीवारें गुज़ार देती हैं पूरी उम्र
दरवाज़ों-खिड़कियों की रखवाली में
जब कभी गिरती हैं बूढ़ी होने पर
बन जाता है घर खँडहर

दीवारें डर हैं, घर हैं
लाज हैं, जांबाज हैं
दीवारें सुकून हैं, जुनून हैं
छत का एहसास हैं दीवारें
रिश्तों का सम्मान हैं दीवारें
पूरे घर का स्वाभिमान हैं दीवारें।