Last modified on 26 जून 2013, at 15:42

दीवारें / महेश वर्मा

कमरा यह बना दीवारों से
यहाँ वर्जित है आकाश का आना
सुबह को खुली खिड़कियों के अंतराल से ज़्यादा।

कमरे में नहीं होता आकाश तो नहीं होती चिड़िया,
पतंग या लड़ाकू विमान।
नहीं होते सितारे, न बरसती ओस न बरख -
एक हवा होती, रंगहीन, जिसमें
घूमता होता पंखा मीडियम स्पीड पर।
दीवारें रोकती हैं आकाश।
इस गहरी रात में निकलकर बाहर छोटे से इस चाँद के नीचे -
मैं ज़ोर से भरता हूँ फेफड़े में आकाश -
थोड़ा उजला हो जाता, आत्मा का साँवला रंग।