अब तबियत कैसी है ?
किसी ने पूछा
उस ढही दीवार से
वह बेचारी क्या बोलती
मौन
नज़रें झुकाए
सीलन-भरे सिकुड़े होंठों से वह मुस्कराई ।
देश के
सारे बुलडोजर
ख़ुशी के मारे
अपने को क्रान्तिकारी समझ
नाचने लगे ।
अब तबियत कैसी है ?
किसी ने पूछा
उस ढही दीवार से
वह बेचारी क्या बोलती
मौन
नज़रें झुकाए
सीलन-भरे सिकुड़े होंठों से वह मुस्कराई ।
देश के
सारे बुलडोजर
ख़ुशी के मारे
अपने को क्रान्तिकारी समझ
नाचने लगे ।