Last modified on 22 जून 2016, at 00:32

दुखिया रात / भुवनेश्वर सिंह भुवन

सुतला राती झिंगुर झनझनाबै,
घुप्प अन्हरियाँ भगजोगनी नचाबै,
गोस्सा सें जरलॅ पछिया हुहुआबै,
जाने कहाँ सें ठकुरैलॅ आबै।

जरला खेतॅ में भागॅ के भारलॅ,
समय के निर्मम आरा सें फाड़लॅ,
अंग-भंग सपना बटोरै दुख पाबै,
लहुवैलॅ घाव देखै, बहलाबै।

लोरॅ सें नहैलॅ उस्सठ करुवॅ गीत,
पीड़ा सें पोसलॅ हरकट तित्तॅ प्रीत,
मारै साँङ बेधै कोमल छाती,
प्राण जरै जेना भिंजलॅ बाती।

वतहा केॅ के समझैतै जाय,
कि दुखिया राती पर की बीतै छै हाय!