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दुखी मानवता / शिवनारायण / अमरेन्द्र

साँझकोॅ झुटपुटा में एक ठो बुढ़िया
जे हमरोॅ सिरहाना में हौले सें
आवी केॅ बैठी जाय छै
अपना केॅ मानवता बतावै छै।

हम्में ओकरा पर बरसी पड़ै छी
कैन्हें कि हम्में लिखै लेॅ चाहै छी
एक ठो अदद कविता अपनी प्रेमिका के नागें
मतर बुढ़िया के मुरझैलोॅ आँख
रुक्खोॅ खेखरोॅ आरो
चेहरा पर पसरलोॅ उमिर के झुर्री बीचें
दुक्खोॅ के लहर हिलोर मारतें रहै छै
ओकरोॅ कमजोर हाथोॅ पर
ओकरोॅ मटमैलोॅ आँचल
पसरलोॅ रहै छै।

हम्में देखै छियै
लेबनान, ईरान आरो पंजाब
कोय घायल कबूतर नाँखि
खून सें लथपथ अँचरा में पड़लोॅ छै
हम्मंे ओकरोॅ आँखी में झाँकै छियै
जहाँ अथाह शून्यता केॅ छोड़ी
आरो कुछुवो नै हुऐ छै
ओकरोॅ बड़की-बड़की
बुढैलोॅ-थकलोॅ आरो
एकदम सें खुल्ला आँख
न जानौं, कै ठां टिकलोॅ रहै छै
सुखलोॅ ठोरोॅ के बीच
जेना एक्के बोल रहै छै
हम्में मानवता छिकां
हम्में मानवता छिकां
जे कोय बबूले नाँखि फूटतें रहै छै।

अपनोॅ गोड़ोॅ के रिसतें खून लेॅ
शायत ओकरा कोय परवाह नै छै
हमरा लागै छै
ठीक वहीं ठां
परमाणु मिसाइल सिनी
कील नाँखि धँसी गेलोॅ छै
आरो ओकरोॅ पीठी पर
औजारोॅ के अनगिन कारखाना
सूइये नाँखि चुभी रहलोॅ छै।

अँचरा में पड़लोॅ पंजाब कुर्रहेॅ लागलोॅ छै
बुढ़ियां ओकरा देखलकै
ओकरोॅ आँखी में कुछ होने भाव छै
जेना मरुभूमि में बूंद भर पानी वास्तें अरमरैतें
कोय भटकी गेलोॅ यात्री के
साथी के आँखी में होय छै
एकटा बेवस भाव!

मानवता के हालत
कँपाय दै वाला छै
हम्में कुछ कहै लेॅ चाहै छियै
मतरकि हमरोॅ संवेदना
घन्नोॅ सें घन्नोॅ होलोॅ जाय छेलै
आरो आँखी के आगू
कुहासोॅ फैलेॅ लागलोॅ छेलै
कण्ठोॅ में शब्द जेना घुटी-घुटी जाय
हम्में उमतैलोॅ रं उठी ठाढ़ों भेलियै
हम्में चाहलियै कि ओकरोॅ घाव सहलावौं
कि तखनिये वहू उठी ठाढ़ोॅ भेलै
हमरा सें कुछ कहले बिना
चली देलकै
आरो संझकोॅ झुटपुटा में अलोपित होय गेलै।

लहू रोॅ हौ दाग सिनी
अभियो वहीं ठां छेलै
जे ओकरोॅ रिसतें गोड़ोॅ सें बनलोॅ छेलै
आरो ऊ संझकी अन्धरिया में
करिया दिखाय रहलोॅ छेलै।