दुख की अपनी भाषा होती है
सबसे अलग और सबसे जुदा
दुख
पागल लम्हों की पतझड़ आवाज़ें हैं
जिनकी क़ीमत का तख्मीना
उजले काग़ज़ पर
भद्दे काले शब्दों की
तेज़ी से चलती रेल के नीचे
सो जाता है
कविताओं और ग़ज़लों में
बेमानी हो जाता है !
दुख की अपनी भाषा होती है
सबसे अलग और सबसे जुदा
दुख
पागल लम्हों की पतझड़ आवाज़ें हैं
जिनकी क़ीमत का तख्मीना
उजले काग़ज़ पर
भद्दे काले शब्दों की
तेज़ी से चलती रेल के नीचे
सो जाता है
कविताओं और ग़ज़लों में
बेमानी हो जाता है !