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दुख / सविता सिंह

क्या होता है दुख का भी कोई रंग
पीला उदास
थकी रात में जैसे थका चाँद
क्या दुख की होती है कोई गति
मद्धिम धीमी
जैसे रुकी हुई हवा बेमन चलती हो
क्या दुख सबके हिस्से मिलता है
माँ-बाप भाई-बहनों की तरह
क्या दुख किसी भी दिन आ सकता है
किसी के भी घर
जीवन की नींव में धँस जाने के लिए

या दुख सादा होता है
ढूँढता अपने ही रंग
कभी थके चाँद में
कभी बुझे मन में
कभी ख़ाली आँखों के बेरंग सपनों में
हममें तुममें