कहाँ है वह दुख
चट्टानों से टक्कर मारता
भरी-पूरी नदी जैसा
और ये क्या है
बून्द-बून्द टपकता
मरे हुए साँप के
विष जैसा।
कहाँ है वह दुख
चट्टानों से टक्कर मारता
भरी-पूरी नदी जैसा
और ये क्या है
बून्द-बून्द टपकता
मरे हुए साँप के
विष जैसा।