कभी घर को
और कभी खेतों को देखकर पिता
अपनी औलाद के बारे में सोचते हैं
सोचते हैं उसके लिए वे
कुछ नहीं कर पाए
थके हुए सैनिक की तरह
आँगन में ऊँघते हुए
या सेबों से लदे हुए पेड़ की
टहनियाँ लपकते हुए
वे अकसर कहते हैं
बर्फ और वनों से नहीं
छोटे-बड़े दु:खों से बने हैं पहाड़
पहाड़ पर सचमुच
पहाड़ है उनका जीवन
चट्टान की तरह निश्चंल
और झरने की तरह गुनगुनाते हुए
बादलों से घिरा हुआ आसमान हैं पिता।