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दुनियादारी की बातें / शशांक मिश्रा 'सफ़ीर'

कहो फलाने,
पहली बार
किसने देखा होगा,
चुपचाप उतरते आंखों से पानी?
किसने छोड़ दिया होगा यूँ ही,
समय की चौखट पर अनमोल जवानी?

कहो फलाने,
पहली बार
किसने सोचा होगा कि
अंगूर नहीं थे खट्टे,
छलांग थी छोटी?
किन बेबस आंखों ने छुपकर,
ढूंढी होंगी चांद में रोटी?

कहो फलाने,
पहली बार
किन नींदों ने त्यागे होंगे,
कुछ ख्वाब भटकते?
किसने मरता बचपन देखा होगा
पांव पटकते?

कहो फलाने,
पहली बार
कौन रहा होगा जिसने,
नारी के पाँव पखारे होंगे?
किन अबलाओं ने बाजारों में,
बिकने को देंह उतारे होंगे?

कहो फलाने,
पहली बार
किस प्रेयसी ने स्वीकारा होगा,
आंखों में ही शर्माना?
किस प्रेम ने समझा होगा,
मन का मन को समझाना?

अरे धिमाके,
अब छोड़ो भी
हम क्यों सोचें, ये दुनियादारी की बातें हैं।
तुम सुर्ती रगड़ो भइया अउर चिलम सुलगाते हैं।
कश जो लोगे एकबार सब धुँआ बन उड़ जाएगा।
राख बचेगा जो चिलम में, सार वही रह जायेगा।