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दुनिया रैन-बसेरौ / शंकरलाल द्विवेदी

दुनिया रैन-बसेरौ

जा दिन काल करैगौ फेरौ-
कोई बस न चलैगौ तेरौ।
रे प्रानी!-
मत कर गरब घनेरौ।।

निखरै कंचन जैसी काया,
चन्दन-गंधी शीतल छाया।
ऐसे मानसरोवर वारे-
हंसा उड़ि कहुँ अनत सिधारें,
रे पंछी!-
दुनिया रैन-बसेरौ।।
रे प्रानी!-
मत कर गरब घनेरौ।।