Last modified on 25 अप्रैल 2020, at 15:25

दुनिया लौट आएगी / शिव कुशवाहा

निःशब्दता के क्षणों ने
डुबा दिया है महादेश को
एक गहरी आशंका में

जहाँ वीरान हो चुकी सड़कों पर
सन्नाटा बुन रहा है एक भयावह परिवेश
एक अदृश्य शत्रु ने
पसार दिए हैं अपने खूनी पंजे

सिहर उठी है संवेदना
ठिठक गयी हैं अभिव्यक्तियाँ
शब्दों ने जैसे अपना लिया है मौन
भावनाएँ जैसे जम गयी हैं
हृदय के किसी कोने में बर्फ के मानिंद

संक्रमण के ख़तरनाक दौर में
जहाँ सुरक्षित नहीं हैं हम
लेकिन भविष्य की पीढ़ी को
सुरक्षित देखना चाहती हैं
हमारी आशान्वित आँखें

हमारे भविष्य की आंखे
टकटकी लगाए देख रही हैं
आशाओं के अथाह समुद्र में
उनकी स्पंदित सांसों के साथ
अब समय ठहर गया है

और ठहर गयी है मनुष्यों की रफ़्तार
दुनिया धीरे धीरे
तब्दील हो रही है
एक अव्यक्त भय में

दुनिया लौट आएगी
जल्द अपने रास्ते पर
अभी हवाओं में कुछ ज़हर ज़्यादा है...